hasratein
Wednesday, October 20, 2010
आज कोई जानकर भी मुझसे अंजन बन गया
कल भी कहाँ था वो मेरा
जो आज कहूँ के किसी और का बन गया
ऐसा मन था मेने क कोई है जो मुझको भी मिल गया पर अज ये जाना है मैंने के
वो तो झोंखा था हवा का जो मेरी मुठ्ठी से बह के निकल गया
आज कोई जानकर भी मुझसे अंजन बन गया
कल भी कहाँ था वो मेरा
जो आज कहूँ के किसी और का बन गया
ऐसा मन था मेने क कोई है जो मुझको भी मिल गया पर अज ये जाना है मैंने के
वो तो झोंखा था हवा का जो मेरी मुठ्ठी से बह के निकल गया
आज कोई जानकर भी मुझसे अंजन बन गया
कल भी कहाँ था वो मेरा
जो आज कहूँ के किसी और का बन गया
ऐसा मन था मेने क कोई है जो मुझको भी मिल गया पर अज ये जाना है मैंने के
वो तो झोंखा था हवा का जो मेरी मुठ्ठी से बह के निकल गया
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